भारतीय राजनिति का दानव ----- भ्रस्टाचार एक
सर्वप्रथम परम आदरणीय श्रधेय श्री अन्ना हजारे जी को एवं उनके समस्त दल को जो स्वैक्क्षिक रूप से दानव रुपी भ्रस्टाचार के विरुद्ध सार्थक प्रयास कर रहे हैं उन सभीको हम अपना हार्दिक आभार प्रकट करते हुए कोटिश्ह धन्यवाद प्रदान करते हैं . उनके आह्वान पर १६ अगस्त २०११ ई० से भ्रस्टाचार के विरुद्ध आरम्भ होने वाले आमरण अनशन के लिए हम सभी अपने मनोबल, जनबल एवं उपलब्ध साधनों के साथ साथ उनके नेतृत्व में सरकार संरक्षित भ्रस्टाचार को निर्मूल करने हेतु पूर्ण रूपेण तैयार हैं. आपके द्वारा प्रस्तावित जन - लोकपाल बिल को हम सहर्ष समर्थन एवं स्वीकार करते हैं. यह लोकपाल बिल भ्रष्टाचार के बिरुद्ध एक मील का पत्थर साबित हो सकेगा ऐसा हमारा चिंतन है.
यह स्मरणीय है , जब १९७७ ई० में डायलिसिस पर जीवन के अंतिम क्षणों में परम आदरणीय स्वर्गीय जय प्रकाश नारायण जी ने स्वर्गीय इंदिरा जी के भूलवश हो रहे किंचित भ्रस्टाचार के बिरुध उठ खड़े हो कर आन्दोलन में अपने बूढ़े शरीर के पानी बन चुके रक्त में इस हुंकार से उबाल भर दिया था कि नहीं इंदिरा नहीं हमारे जीते जी इस देश में भ्रष्टाचार नहीं हो सकेगा-- नहीं, कदापि नहीं और जिसमे अंततः वे पूर्णतया बिजयी भी हुए थे.
हमारा यह दुर्भाग्य ही है कि अनेकानेक बलिदानों के फलस्वरूप प्राप्त स्वतंत्रता के तिरेसठ वर्षो के बाद भी जनता का, जनता के लिय और जनता के द्वारा बनाई गयी सरकार जिन्हें सवैधानिक स्तर पर मात्र जनता का सेवक का हैसियत प्राप्त है, राज्य संपोषित भ्रटाचार करते रहने के लिए आज भी विदेशी शासको की तरह जनता को ही आंखें तरेरने से बाज नहीं आ रही है.
भारतवर्ष आज विश्व पटल पर एक महाशक्ति बन चुका है फिरभी इसमें बसने वाले ८५% जनता आज भी निरक्षर, दीन-हीन, दुःख- दारिद्रय, अभावग्रस्त और कष्टकारी अवस्था में जी रहा है, भ्रस्टाचार रुपी राक्षस इनके हिस्से का कुल जमा धन का या तो दुरूपयोग कर रहे हैं अथवा आपने भ्रस्ट आचरण से डकारते जा रहे हैं.यह भी स्मरणीय तथ्य है कि माननीय स्वर्गीय राजीव गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री, ने स्वयं ही यह स्वीकार किया था कि सरकार से आवंटित संसाधनों का ८५ % हिस्सा तो रास्ते में ही सरकारी तंत्रों द्वारा हजम कर लिया
जाता है, तथा मात्र १५ % धन ही जनता के पास पहुँच पाता है, इसे रोकना होगा.
आज देश की १५ % आबादी जो देश के बड़े शहरों में रहती है, देश के सम्पूर्ण सम्पतियों, साधनों और सुविधाओं पर अपना अधिकार जमाये बैठी है जिन्हें हम इंडिया और इंडियन के रूप में जानते है, वहीं हिंदुस्तान की ३५ % जनता जो छोटे-छोटे शहरों में रहती है अपने साधनों का क्षरण देख कर भी मात्र मूकदर्शक ही बनी हुई रहती है, महंगाई की मार ने इन्हें अपने परिवार के भरण पोषण तक ही सिमित कर रखा है, इन्हें अपना सारा समय परिवार के आवश्यकताओं को पूरा करने में ही नष्ट कर चुप चाप बैठ जाना पड़ता है. शेष ५० % भारतवर्ष_सुदुर ग्रामीण अंचलो में बसनेवाला भारत तो लगभग भूखे पेट ही सोता है और इन्हें बड़ी कठिनाई से ही दोनों शाम की रोटी मिल पाती है क्योंकि इनके रोटी और रोजी पर तो इंडियन का अधिकार है वे बड़ी चतुराई से इनके भाग्य-विधाता जो कहलाते हैं. इन्होने ऐसा व्यवस्था कर रखा है कि वे ही इनका भला कर सकते हैं, इनका कल्याण कर सकते हैं, इन्हें सोचने के लायक ही नहीं रहने दिया गया है, इन्हें अपने हित की बात सोचने की कोई जरूरत नहीं और तुर्रा यह कि देश के संसाधनों में इनका जो हिस्सा है बदले में उस पर सिर्फ इंडियन का ही अधिकार है.
भारतवर्ष जो कि दुनियाँ का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने का गौरव पाता है, जहाँ जनता का राज, जनता के लिए राज, जनता के द्वारा राज है, यहाँ का संविधान, यहाँ का संसद, यहाँ के विधान सभाएँ, यहाँ के न्यायपालिकाएं, यहाँ के नियम-कानून यहाँ तक कि यहाँ के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री परिषद्, राज्य मंत्री परिषद्, विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका वह जो कुछ भी है वह सभी जनता के हित में इसके उन्नति, प्रगति, संरक्षा, सुरक्षा और सुविधाओं को सुवय्वस्थित करने के लिए है जिसके लिए कर के रूप में संचित राज कोष से सभी व्यवस्थापको को एक निर्धारित वेतन, भत्ता और व्यय आवंटित है.
ऐसे समय में पूरा भारतवर्ष श्रधेय अन्ना हजारेजी को एक आशाभरी नेत्रों से निहार रहा है कि भारतमाता की गोद में आज भी अन्ना, अरविन्द और किरण जैसी लाल है जो इन देशी परन्तु कहीं अधिक क्रूर, अत्याचारी, निर्मम, शोषक, उत्पीड़क और रक्षक ही भक्क्षक की भूमिका में सरकारी तंत्रों पर अधिकार जमाये बैठे भ्रस्ट लोगो पर अंकुश लगाने हेतु पूर्ण शक्ति संपन्न जन लोकपाल का सृजन कर देश को इस भ्रस्टाचार रुपी दानव से मुक्ति दिलाने में अपनी जान लगाने को तैयार है. हम सभी अपने हार्दिक एवं राष्ट्रिय भावनाओं से आदरणीय अन्ना को पूर्ण सम्मान एवं समर्थन देने को तैयार बैठे हैं.
१ अगस्त २०११ ई० से निर्धारित पूर्व कार्यक्रम के लिए भी हम सभी अपनी-अपनी ज्ञानबल, मनोबल, जनबल और सिमित संसाधनों के साथ देश की जनता पर हो रहे भ्रस्टाचार, अत्याचार, शोषण, उत्पीडन को जड़ से उखाड फेंकने को कृत संकल्प हैं. भारतमाता अब अपने देशी किन्तु क्रूर, अत्याचारी, निर्मम, शोषक, उत्पीड़क शासन की बेडी से मुक्त होने को छटपटा रही है. तार-तार माँ का आंचल फिर बलिदान मांग रही है.
(क्रमश)
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