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Monday, September 10, 2012


                              क्या भारत मर जाएगा ???

कभी नहीं ! यह हो नहीं सकता !!                                                                                                                                                               यदि ऐसा होता है तब तो सारे संसार से सारी आध्यात्मिकता का समूल नाश हो जायेगा, सारे सदाचारपूर्ण आदर्शों के जीवन का विनाश हो जायेगा धर्मों के प्रति सारी मधुर सहानभूतियां नष्ट हो जाएगी, सारी भावुकता का लोप हो जायेगा और उसके स्थान पर कामरूपी देव और विलाशतारुपी देवी राज्य करेगी. धन उसका पुरोहित होगा ; प्रताड़ना, पाशविक बल और प्रतिद्वंदिता, ये ही उनकी पूजा-पद्धति होगी और मानवता उसकी बलि-सामग्री हो जाएगी. ऐसी दुर्बलता कभी हो नहीं सकती, क्रियाशक्ति की अपेक्षा सहनशक्ति कई गुना बड़ी होती है. प्रेम का बल घृणा के बल से अनन्त गुना अधिक है.


हाँ यह अवश्य है कि कुछ अराष्ट्रीय, गैर-राष्ट्रिय अथवा हमसे इर्ष्या रखने वाले कुछ विदेशी राष्ट्र या कौमें विश्व की हमारी इस सबसे प्राचीनतम, अतुलनीय, सुन्दर, अनेकता में एकता, सर्वधर्म समभाव की सभ्यता-संस्कृति को प्रदूषित करना चाहतें हैं ?? भारत को मिटाने की कोशिश हमेशा से होती आई है हजारों वर्षों से हम इसे झेलते आ रहे हैं. विदेशी लूटेरे, बाहरी आततायिओं, विदेशी आक्रमणकारी और विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियों ने हमें हजारो बार मिटाने के लिए भरपूर रौंदा है, हम पर अमानवीय अत्याचार किया है और हमें सहस्त्रों वर्षों तक गुलाम बनाकर रखा है.   

फिर भी चिंता की कोई बात नहीं, भारत का पुनुरुथान हुआ है और होगा ! अवश्य होगा !  पर वह जड़ की शक्ति से कभी नहीं, वरन आत्मा की शक्ति से ! वह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं होगा, वरन शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा ! संतो के द्वारा होगा, शैतानों से नहीं ! धन की शक्ति से नहीं, वल्कि भारत के त्यागी और भिक्षा-पात्र की पौरुष-शक्ति से संपादित होगा ! विश्व में कहीं कोई उदाहरण नहीं जहां धनी व्यक्तियों ने,विद्वत-विशेषज्ञों ने किसी राष्ट्र के मुख्य धारा को परिवर्तित किया है. एक या दो महान उदाहरण को पैदा करने की शक्ति तो धरा के किसी भी भू-भाग को प्राप्त होता है पर राष्ट्र तो तब महान बनता है जब कुल जमा पुरे राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति का जीवन स्तर उच्चतर श्रेणी का हो !

इसके लिए जन-जन की दिव्यता को जगाना होगा, क्षुधा-तृष्णा सहित ताप को सहन करने की क्षमता अर्जित करना होगा ! विलाशता-वैभवपूर्ण भवनों में बैठकर धर्म की थोड़ी सी चर्चा करना भले ही अन्यान्य जाति और कौमों को शोभा देती होगी, पर भारत को इससे कहीं अधिक सत्य की पहचान है ; असत्य और कपट को यह देश दूर से ही ताड़ जाता है. हमें अब त्याग करना होगा उन सभी कर्मों को - जो हमें भटका देती है__ अपने लक्ष्यवेध से ; महान देश के लिए महान उदेश्य की प्राप्ति हेतु महान और कठिन कार्य आरम्भ करना होगा ; कोई भी बड़ा कार्य बिना त्याग के हो नहीं सकता !! 

अपने आरामों को - अपने सुखों का - अपने नाम - यश और पदों का__ इतना ही नहीं, अपने जीवन तक का __ त्याग और समर्पण करना होगा ! मनुष्यरूपी श्रृंखला का निर्माण कर ऐसे पुल का निर्माण करना होगा जिस पर हो कर भारत की चतुरंगिनी, चहुंमुखी और माता की पुत्रवाहिनी सेना पार कर जाये. समस्त देशभक्ति शक्तियों को एकत्र कर देश-प्रेम की अति उज्जवल ध्वजा के अध्यधीन कर्म करना होगा_सफलता निश्चय मान उद्घोषणा करनी होगी, आत्मशक्ति के सम्मुख सभी सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक बंधन और अन्यान्य बाधाएँ स्वयं ही भारत की पुकार से पथ को आलोकित कर देगी. भारत का भविष्य अब और अधिक गौरवशाली और उज्जवल दीखता है, अनेकानेक सच्चरित्र , त्यागी , सत्य और अहिंसा का परवाह करते हुए युवकवृन्द राष्ट्र-यज्ञ में अपना सर्वस्व लूटाने को आतुर हो रहे हैं _ परन्तु परवाह किये बिना माँ भारती को एक बार अपने सिंहासन पर पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु पुर्व की अपेक्षा अधिक महिमामंडित होकर विराजमान करने का संकल्प पूर्ण जाग्रत अवस्था में  करना होगा !  
                                                                                                                                                                                                       अतएव, सभी भावी देशभक्तों, भावी देशप्रेमियों, भारत की भावी नव-निर्माणकारी शक्तियों को एकत्र होकर इर्ष्या-विद्वेष का त्याग कर अनुभव करना होगा, क्या हम अनुभव करते हैं कि देवता और ऋषियों की कड़ोड़ के कड़ोड़ संतानें आज फिर पशु-तुल्य हो रही     है ? क्या हम ह्रदय से यह अनुभव करतें हैं कि भारतवर्ष में कड़ोड़ के कड़ोड़ आदमी भूखों मर रहे हैं और लाखों-कडोदों लोग शताब्दियों से ऐसे मरते आ रहे हैं ? कडोदो-कड़ोड़ युवक-युवतियां रोजगार के चक्रव्यूह में फंसे हैं अपनी हल न होने वाली व्यथा से छटपटा रहे हैं. आवश्यकता से कहीं अधिक अन्न पैदा करने के बाद भी हम भूखे हैं महंगाई की मार से बेचैन हैं, धन की जमाखोरी चरम पर है, पैसों की कालाबाजारी चरम पर है, राज्यकोष का लूट है-बंदरबांट है, कालाधन विदेशी बैंकों की शोभा बढ़ा रही है, हमारा काला-धन विदेशों का विकास कर रही है , दलितों की झोपड़ियाँ अन्धकार में है, बेसहारों के तन पर धोती नहीं है, अशिक्षित- तिरस्कृतों का जीवन नारकीय बना हुआ है,  फिर भी उन्माद है_शोषक और सामंतों का , अट्टहास है बढती महंगी अर्थ व्यवस्था पर ; हास्य है उन रहनुमाओं का दलितों की झोपड़ियों को जानने की ; तो कौतुक है योजनाकारों का श्रमिकों को बत्तीस रूपये की पारिश्रमिक मिलने की ; संतुष्टि है सामंती नेतृत्वों को उन कराहते-पीड़ित मानवता पर_ तो तो क्या हम कभी अनुभव करते हैं कि अज्ञानता के काले बादलों ने पुरे भारतवर्ष को एक बार पुनः ढँक लिया है ? क्या यह सब सोच कर हम कभी बेचैन होते है ? क्या यह भावना हमें कभी निद्राहीन करती है ? क्या यह भावना कभी हमारे रक्त के साथ मिलकर हमारी धमनियों में बहती है ? क्या यह कभी हमारे दिल की धड़कन बनती है ? क्या यह कभी हमें पागल बनाता है ? क्या कभी देश कि इतनी दुर्दशा हमारे चिंता का कारण बनी है ? और क्या हम इस चिंता कि आत्मानुभूति कर अपने-पराये, अपना नाम-यश, पुत्र-परिवार, धन-सम्पति, यहाँ तक कि अपने शरीर तक की सुध को विसार दिया है ? यदि अब हम इस आत्मानुभूति का अन्तःस्थल से अनुभव करते है तो ही हम देशभक्त होने की पहली सीढ़ी पर पैर रख लक्ष्य को पाने का दावा कर सकते है -- हाँ, केवल पहली सीढ़ी होगा यह !  www.facebook.com/anil.karn58

हमारे राष्ट्र के लिए इस समय कर्मतत्पर्ता तथा वैज्ञानिक प्रतिभा की आवश्यकता है ....महान तेज, महान बल और महान उत्साह की आवश्यकता है. अबलापन से क्या यह कार्य संपन्न हो सकेगा ?   "उद्योगी पुरुष ही लक्ष्मी को प्राप्त करता है".   एक अंग्रेज बालक, एक अमेरिकन बच्चा यह कह सकता है की वह अंग्रेज है __ वह अमेरिकन है, वह सब कुछ कर सकता है ; वह कुछ भी करने में सक्षम है यह दावा कर सकता है वह __ एक अमेरिकन या यूरोपीय युवक इसी तरह बड़े-बड़े दावे करने में समर्थ होता है. परन्तु क्या हमारे भारत के बच्चे इस तरह की बातें कर सकतें है ? कदापि नहीं ; बच्चों के माता-पिता भी नहीं कर सकते. क्या बच्चे क्या बूढ़े और युवा तो अपनी भाषा तक को पहचानना ही भूल चुके है, आज भारत में अपनी राष्ट्र-भाषा हिंदी / देवनागरी में बात करना हीनता का परिचायक है, माता-पिता तो अंग्रेजी में बात करने वाले अपने बच्चों पर गौरव का अनुभव करते है. हमारी प्रजातांत्रिक सरकार की सभी कार्य-प्रणालियाँ, सभी प्रमुख मंत्रीगण, सभी बुद्धिजीवी समाज, सभी कलाकार, सभी बौधिकताएं आज अंग्रेजी का दास है, हर कोई अंग्रेजी भाषा के सामने नतमस्तक है, हमारे सभी निति-नियम, कायदे-क़ानून, रीति-रिवाज, रहन-सहन यहाँ तक की सामाजिक और पारिवारिक क्रिया-कर्मों ने भी अंग्रेजी और अंग्रेजों का अन्नंत काल तक के लिए दासत्व को स्वीकार करता दीखता है ; अंग्रेजी शासन-पद्धति के अनुशरण करते रहने से हमारी प्रजातान्त्रिक सरकार भी जनता के साथ विदेशी शासकों सा व्यवहार करने से दम्भित है ; हमने एक बार फिर अपनी आत्म-श्रद्धा  को खोने के रास्ते पर चल दिया है, हमने अपना आत्मविश्वास खो दिया है. अंग्रेजों की दासता से मुक्त होने के लिए हमारी कितनी ही पीढ़ियों ने आत्म-बलिदान दिया है इतिहास गवाह है _ हँसते-हँसते अपने प्राणों को बलिदान किया है, फाँसी के फंदे को गले लगाया है. हम लोगों में पाश्चात्य जातियों की नक़ल करने की इच्छा ऐसी प्रबल होती जा रही है कि भले-बुरे का निश्चय अब विचार-बुधि- शास्त्र या हिताहित ज्ञान से नहीं किया जा सकता. पश्चिमी सभ्यता जिस भाव और आचार-विचार कि प्रशंसा करे हम उसे ही अन्धानुकरण कर आत्मसंतुष्ट हो लेते है, उनकी सभी बांतें हमें अच्छी लगती है,वे जिसकी भी निंदा करें, वही बुरा ! परन्तु अफ़सोस ! इससे बढ़कर मुर्खता का परिचायक  और क्या होगा ? क्या दूसरों की हाँ में हाँ मिलाकर, दूसरों का नक़ल कर, परमुखापेक्षी हो कर दासों की दुर्बलता को उतार फेंकने में समर्थ हो पायेंगें कभी हम , इस घृणित, जघन्य निष्ठुरता से हम क्या बड़े-बड़े अधिकार को पाने में सफल हो सकेंगें ? क्या इसी लज्जास्पद कापुरुषता से हम सम्पूर्ण स्वाधीनता को पा सकते हैं ? उत्तर शायद नहीं में ही होगा ! कभी नहीं, यह हो नहीं सकता ! तो सकारात्मक उत्तर की प्राप्ति के कौन से मार्ग उचित होंगें हमें ढूढना होगा ? हमारी जाति-देश की उन्नति किस प्रकार हो सकेगी उन पथों का स्वयं निर्माण करना होगा_ दूसरों की नक़ल कर नहीं वरन अपनी पद्धति का स्वयं का निर्माण व् विकास करना होगा !
                                                                                                                                                                                                         हमारी भारतीय-जाति को शक्तिहीन कर देने वाली दुर्बलताओं का प्रवेश विगत एक हजार वर्षों से ही हुआ है इन पिछले कुछेक हजार वर्षों में ही मानों हमारे भारतीय जीवन अपने को दुर्बल से दुर्बलता की ओर धकेल लेने का ही लक्ष्य निर्धारित कर रखा था और अंततः हम उस परिस्थितियों की सहर्ष स्वीकारोक्ति से अपने को दलित बना डाला ; हम उस केंचुए के समान हो गए जो हर प्रकार से विदेशी शक्तियों के पैर के पास रेगतें रहने को बाध्य हो कर इसे ही अपनी प्रतिष्ठा और गौरव समझने लगे, हम बाध्य थे कि इस समय जो चाहे हमें कुचल सकता है. परतु परिस्थिति बदली हम स्वाधीन हुए, अनेकानेक बलिदानियों ने हमें परावलंबन से मुक्त कराया, आज हम स्वतंत्र हैं फिर भी दासता को हजारों-हजार वर्षों तक सहते रहने से, दासता की पाठ पढ़ते-पढ़ते हमारी मुख्य जीवन धारा ने जिस दुर्बलता को आत्मसात कर लिया वही शक्तिहीनता आज भी हमारी दुर्दशा-दुर्दिनों का प्रमुख कारण है. इस कुरूप स्वभाव को, विदेशियों के मुखापेक्षी विकृत चरित्र को ढोना स्वतंत्र भारत में महापाप है, ये हमारे प्रमुख दोष हैं जिसे अब उतार फेंकना होगा. 

तो ए वीर भारत ! परावलंबन ही विकट भय का कारण है. हमें स्वाबलंबन की पाठ से भारत में जान-प्राण डालना होगा. अपने आत्मविश्वास को जगाना होगा, अपनी आत्मश्रधा को पुनर्जीवित करना होगा ! विश्वास, सहानभूति - दृढ विश्वास;ज्वलंत श्रद्धा चाहिए. श्रद्धा, श्रद्धा ! अपने आप पर श्रद्धा तथा परमात्मा में श्रद्धा और विश्वास का तीव्र वेग ! इस श्रद्धा और विश्वास को हमें पाना ही होगा ! पश्चिमी जातियों के जिस भौतिक शक्ति-विकास को हम ललचाई दृष्टि से देखतें हैं वह उनके इस श्रद्धा-विश्वास का ही फलाफल है क्योंकि वे अपने मानसिक-शारीरिक बल के विश्वासी हैं. इसी प्रकार हम भी अपने आत्मशक्ति, आत्मा की शक्ति पर श्रद्धा-विश्वास कर आगे बढें तो हमारी आत्मबल की वृधि होना निश्चित है. इसी श्रद्धा-विश्वास को प्राप्त करने का महत्वपूर्ण कार्य सम्मुख करना होगा. पिछले सैकड़ो वर्षों की दासता की विषाणु जन्य आघात से हमारे रक्त-मज्जा में जो उपहास करने का रोग समां गया है, प्रत्येक विषय को हंसकर उड़ा देने की इस विकृत स्वभाव को छोड़ना होगा, गंभीरता के चरित्र को गढ़ना होगा और वीर बनकर  श्रद्धा-विश्वास के साथ अपने आप को सुदृढ़ करना होगा आगे सब कुछ तो अपने आप होता ही जाएगा - अवश्यम्भावी होगा !

हम तो आज भी उसी सर्व शक्तिमान परम पिता की संतान हैं, उसी अन्नंत ब्रह्माग्नि की चिनगारियाँ हैं__ " हम कुछ नहीं क्योंकर हो सकते हैं" ? हम सब कुछ हैं और सब कुछ कर सकते हैं, हमें करना ही होगा. इसी आत्मविश्वास रूपी प्रेरणा-शक्ति से हम कभी विश्व सभ्यता की उच्च से उच्चतर सीढ़ी तक पहुँच पाए थे, अब हमारी अवनति हो रही है, हममे कोई दोष आया है तो उस आत्मविश्वास की कमी से ही हमारी दुरावस्था है. यह आत्मविश्वास का आदर्श ही हमारे राष्ट्रिय जीवन की मुख्यधारा को उन्नतिशील-प्रगतिशील बनाने में सहायता कर सकता है. सम्पूर्ण राष्ट्रिय जीवन में इस आत्मविश्वास रूपी अस्त्र का विकाश हो तो निश्चय ही अधिकांश दुःख और अशुभ-अवनति का नाश हो जायेगा. निष्कपट विश्वास एवं सदुद्देश्य निश्चय इन दोनों अस्त्रों के धारण मात्र से ही न्यूनतम लोग भी समस्त विघ्न-बाधाओं को पराजित कर जय-लाभ कर लेंगें, उन्हें सम्पूर्ण धरा की कोई भी विनाशकारी शक्तियां पराजित नहीं कर सकती, कोई क्षति नहीं पहुंचा सकता चाहे सभी अवसरवादिता एक साथ उसके विरुद्ध ही क्यों न खड़ा हो ! दुर्बलता से ही सभी दुःख और कष्ट पैदा होते हैं, दुःख भोगते रहने का मुख्य कारण यही है ; दुर्बलता के कारण ही हम चोरी-डकैती, झूठ-ठगी-बेईमानी, अत्याचार-व्यभिचार, भ्रस्ताचार-घपले-घोटाले करने को विवश होते हैं. यह दुर्बलता ही सभी दुखों का कारण है, सभी कष्टों का उद्गम है.
                                                                                                                                                                                                                     हमें आलस्य का त्याग कर उठना होगा, साहसी बनना होगा, वीर्यवान चरित्र से शक्तिसंपन्न होकर सभी उत्तरदायित्व को अपने कन्धों पर लेना होगा, स्वयं को उत्तरित करना होगा कि हम स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं तथा जो कुछ भी हम चाहते हैं सब कुछ हमारे भीतर विद्दमान है. विश्वास की आत्मशक्ति से हमें अपना भविष्य गढ़ना होगा. अतः बल ही एकमात्र आवश्यक बात है, बल ही भाव-रोग की दवा है. धनी-वर्ग के द्वारा निर्धनों का शोषण-दमन-उत्पीडन के विरुद्ध बल ही दवा है, विद्वानों द्वारा दबाये सताए जानेवाले अशिक्षितों का बल ही एकमात्र दवा है, अन्य पापियों के विरुद्ध भी यही एकमात्र दवा है.

अतएव हे वीर भारत ! वीर-धीर-गंभीर भारत ! उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत ! अतः हे भारत के वीर ; हे भारत की वीरांगनाएं  उठो और जागो__ फिर एक बार उठो ! फिर एक बार माता को तुम्हारी आवश्यकता आन पड़ी है ! इस बार अपनों नें घात-प्रतिघात किया है, निज ने छल किया है माता के साथ_माँ के आँचल को अपनों ने तार-तार किया है ! माँ एक बार पुनः तुम्हें पुकार रही है, अपनी व्यथा का आर्तनाद कर रही है , चिल्ला-चिल्ला कर कह  रही है उठो, जागो हे सुपुत्र पुत्र-पुत्रियाँ समय रहते जाग जाओ ! हे वीर भारत अपने पुरुषार्थ के सिंहनाद की गर्जना से सम्पूर्ण भारत में महामारी की तरह फ़ैल चुकी भ्रष्टाचार-व्यभिचार-अत्याचार, हत्या-बलात्कार-हिंसा, इर्ष्या-विद्वेष-उत्पीडन, शोषण-दमन-दोहन, चोरी-डकैती-बेईमानी के साथ-साथ राज्य-सत्ता, राज्य प्रशासन-तंत्र और राजनीति में कोढ़ की तरह प्रचलित घूस-घपले-घोटाले ; भाई-भतीजावाद-वंशवाद ; निरंकुशता-सामंतवाद-अधिनायकवाद को निर्मूल करने के लिए, इसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए रणभेरी की गगन भेदी शंख को फूंक दो, रण-श्रृंगा बजा दो ! भारत के आकाश को परिवर्तन की आँधी के तुमुलनाद से गुंजायमान कर दो ! अग्निमंत्र से अभिमंत्रित कर राष्ट्रनिर्माण के यज्ञ-कुंड में आन्दोलाग्नि को प्रज्वल्लित कर दो ! माँ भारती की आनेवाली पचास पीढियां हमारा मुँह ताक रही है ; आज हम न जग़ पाएँ तो अनर्थ अवश्यम्भावी होगा ?

पूर्वजों के आशीर्वाद वचनों का स्मरण कर माँ के नाम की शांतिपूर्वक घोषणा कर देना होगा कि राष्ट्रिय भारत निकल पड़े खेतों-खलिहानों और मेड़ो या कि पगडंडियों से, निकल पड़े कि हलवाहे के हल से, कि किसानों के मचानों से, नवीन भारत निकल पड़े कि झाड़-झंखाड़ों-पेड़ों और पहाड़ों से, निकल पड़े कि नदियों और तालाबों से,  नूतन भारत निकल पड़े कि तिरष्कृत और दलितों की झोपड़ियों से, कि निकल पड़े हंसिये और कुदालों से, निकले चाहे भारत दर्जी के मशीनों से कि लोहारों की भाथियों से, निकले चाहे कि नया भारत कल-कारखानों से कि निकले चाहे हलवाईयों की मिठाइयों से या कि आइसक्रीम पार्लरों से, कि नाई की हजामत से या कि तो जूतों की दुकानों से, नूतन-नवीन भारत निकले आई० टी० पार्कों से या मालों और काम्प्लेक्सों से, निकले युवा भारत कि स्चूलों और कालेजों से, कि निकले संतों-कवियों की कुटियों से, तो निकले लेकिन निकले नवजागरण का लेकर सभी शपथ - मन्त्र  औ सन्देश राष्ट्र के नवनिर्मानों का !

भारत के कल्याण के लिय एक बार उठना होगा आगे आकर नेतृत्व संभालना होगा हमारे उन प्रिय युवाओं को, चाहिय तो बस उत्साही युवक-युवतियां, आत्मविश्वासी युवक वृन्द, जिन्हें कुछ समय के लिय अपने जीवन की समस्याओं को यथा-स्थान छोड़ना होगा; कुछ समय के लिए छोड़ना होगा उस पश्चिमी प्रतियोगितावादी-उपभोगितावादी-भौतिकतावादी तनाव व अवसादपूर्ण और दिशाविहीन जीवन मूल्यों को, इन सब बातों को छोड़ना होगा तो अपने उन समस्त जातियों के लिए, सकल मतों के लिए, भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय के दुर्बल, दुखी, पद दलितों के लिए जिन्हें अपने पैरो पर खड़ा करने केलिए उच्च स्वर से उद्घोषणा करना है __ स्वाधीनता - मुक्ति__ दैहिक स्वाधीनता, मानसिक स्वाधीनता, सामाजिक स्वाधीनता, राजनैतिक स्वाधीनता, आर्थिक स्वाधीनता और अंत में आध्यात्मिक स्वाधीनता के लिए. त्यागना है परतंत्रता केवल परतंत्रता को समाप्त करने के लिए. चाहिए तो बस लोहे की नसें और फौलाद की मांसपेशियां जिसके बज्र के सामान कंधें हों__चाहिय तो बस अन्नंत उत्साह, अन्नंत धैर्य, अन्नंत पौरुष, अन्नंत बल के स्वामी उस युवकवृन्द का जिनके अन्दर क्षात्रवीर्य और ब्रह्मतेज का पूर्ण समागम हो ! हमारे देश को इस समय वीरों की आवश्यकता है_वीर बनो चट्टान की तरह दृढ रहो. भारत को नव-विद्युत् शक्ति की आवश्यकता है जो राष्ट्रिय जीवन में नवीन स्फुर्तियों का संचार कर सके_ साहसी बनो, साहसी बनो_कायरता को दूर करो हे वीर, अपने पौरुष का स्मरण करो,काम-कान्चानासक्त दयनीयता का त्याग करना अभी उचित होगा ! सभी प्रकार की शक्तियां तुममें है, हे वीर,धीर-गंभीर युवा अपने ऐश्वर्यमय स्वरुप का विस्तार करो. तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे है_प्रबल शक्ति आत्मा की है_विस्तार करो विस्तार करो !  

एक बार फिर भारत माता की जयघोष करो ; जय घोष करो ! वन्दे मातरम ! जय हिंद_ के सिहनाद और इन्कलाब-जिन्दावाद की गर्जना से भारत के आकाश को गुंजायमान करना होगा कि गीदड़-सियार का नामों निशान न मिले ; अग्निमंत्र से अभिमंत्रित गगन-भेदी तुमुल-नाद से उद्घोषणा करना होगा उस प्रिय आन्दोलन - जनांदोलन का जिसका परिपथ पूरा राष्ट्र हो ; गाँव-गाँव, शहर-शहर, गली-गली जिधर देखो भारत निर्माण की सिंह-गर्जना हो ! मात्र भारत के पुनर्निर्माण की सिंह-गर्जना ! परिवर्तित कर दो भारत को पूर्ण प्रजातंत्र में , बदल दो भारत को सम्पूर्ण गणतंत्र में , गढ़ लो अपने भाग्य को , रच दो अपनी मानवता को  !!

जय-हिंद ! जय-भारत !                                                                                                                       इन्कलाब-जिंदाबाद !
वन्दे-मातरम !!                                                                                                                                    भारत माता की जय !!


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